Analysis: मोदी के ‘बिगड़ैल सिपहसालार’ हैं अमित शाह, एकदम अलग है दोनों के काम करने का अंदाज

Analysis: मोदी के ‘बिगड़ैल सिपहसालार’ हैं अमित शाह, एकदम अलग है दोनों के काम करने का अंदाज


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बीजेपी अध्‍यक्ष के तौर पर अमित शाह की दोबारा से ताजपोशी हो गई है। शाह और पीएम नरेंद्र मोदी का रिश्‍ता किसी से छिपा नहीं है। सार्वजनिक तौर पर शाह यह मान चुके हैं कि उनके बॉस ‘नरेंद्र भाई’ ही


हैं। शाह के दोबारा से अध्‍यक्ष बनने की एक वजह यह भी है कि पीएम नरेंद्र मोदी भी ऐसा चाहते थे। बाकी शाह को आरएसएस का मजबूत समर्थन तो हासिल है ही। शाह एक बेहद समृद्ध परिवार से ताल्‍लुक रखते


हैं। मनसा स्‍थ‍ित उनका पुश्‍तैनी मकान एक ऐतिहासिक इमारत है। 1980 के दशक में राष्‍ट्रीय राजनीति में दिलचस्‍पी बढ़ी तो पीवीसी पाइप का धंधा छोड़कर फुल टाइम पॉलीटिक्‍स में आ गए। 1990 के दशक में


एक चुनाव के दौरान अहमदाबाद रेलवे स्‍टेशन के एक छोटे से रेस्‍तरां में शाह ने मोदी से कहा था, ”नरेंद्रभाई। भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हो जाइए।” यह सब कुछ मोदी के सीएम बनने से काफी


पहले हो रहा था। अमित शाह के करियर और राजनीति पर पैनी नजर रखने वालीं शीला भट्ट बता रही हैं उनके व्‍यक्‍त‍ित्‍व से जुड़ी कुछ अहम बातें हिंदुत्‍व की लाइन पर चलेंगे शाह, मोदी की भी मंजूरी आने


वाले वक्‍त में अमित शाह का ध्‍यान सिर्फ मोदी के विकास के एजेंडे पर ही नहीं होगा, बल्‍क‍ि वे बीजेपी की पारंपरिक राजनीति के तरीकों की ओर भी लौटेंगे। हिंदुत्‍व ही बीजेपी की राजनीति की धुरी


बनेगा। शाह इस मुद्दे पर नरमी बरतने वाले नहीं हैं। मोदी भी इस बात का संकेत दे चुके हैं कि आरएसएस और बीजेपी के मूलभूत तौर तरीके बदलने वाले नहीं है। आरएसएस भी यह मानती है कि बीजेपी को


राष्‍ट्रवादियों और ‘छद्म धर्मनिरपेक्षों’ के बीच छिड़ी जंग में अपना पक्ष साफ करना होगा। पीएम नरेंद्र मोदी से 14 साल छोटे 51 साल के अमित शाह मोदी के ‘बिगड़ैल सिपहसालार’ (bad cop) हैं। दोनों


सत्‍ता की एक जैसी भाषा का इस्‍तेमाल करते हैं और उनके अस्‍त‍ित्‍व में बने रहने का तरीका भी एक ही है। मोदी और अमित शाह का कामकाज बिलकुल साफ ढंग से बंटा हुआ है। एक सत्‍ता का नेतृत्‍व करता है तो


दूसरा पार्टी का। मोदी और शाह में क्‍या अंतर सबसे भरोसा करना सही नहीं, शायद इसलिए मोदी और शाह लगातार संपर्क में रहते हैं। दोनों के व्‍यक्‍त‍ित्‍व को बेहतर ढंग से समझने वाले लोगों का कहना है


कि दोनों में एक बड़ा अंतर है। मोदी समस्‍याओं से जीतने में भरोसा रखते हैं, जबकि शाह किसी समस्‍या का हल निकालना चाहते हैं। उनका कहना है, ‘जब मामला मोदी के पास आता है तो इस चीज की स्‍पष्‍टता


रहती है कि वे क्‍या चाहते हैं। वहीं, शाह का एजेंडा बेहद जटिल होता है। आरएसएस की पाठशाला में सीखी हर चीज को अपने बर्ताव में लाने में मोदी बहुत कामयाब हैं। दोनों में क्‍या समानता मोदी और शाह,


दोनों के ही पास ‘प्रतीकों की राजनीति’ का तीन दशक से ज्‍यादा लंबा अनुभव है। इसलिए जब अयोध्‍या में प्रस्‍तावित राम मंदिर के लिए शिलाएं भेजने की बात आई तो गुजरात सबसे आगे था। 2002 में जब


कारसेवकों की लाशें गोधरा से अहमदाबाद पहुंची, तो अमित शाह खुद वहां मौजूद थे। राष्‍ट्रीय अहमियत वाले मामलों पर मोदी और शाह की एकराय बन ही जाती है।