
India lockdown: ठहर गए शहर तो यहां खिलखिलाने लगी जिंदगी dhanbad news - tribals in tundi are getting sufficient food these days due to lockdown
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धनबाद [दीपक कुमार पाण्डेय]: कोरोना का संक्रमण बढ़ा तो सरकार ने अचानक लॉकडाउन की घोषणा कर दी। जिनके लिए संभव था, उन्होंने तो अपने घरों में हफ्ता-15 दिन का राशन जमा कर लिया, लेकिन टुंडी की
सेलिना मरांडी, गोरेलाल हांसदा, रूपाय टुडू जैसे जाने कितने लोग थे, जिनके सिर पर अचानक मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। किसी के घर में रात तक का राशन था तो किसी के घर में बस अगले दिन तक का। दिन भर
की कड़ी मेहनत के बाद बचे दो-चार पैसों से पूरे परिवार का गुजारा होता है, लेकिन अगले 20-25 दिनों के लिए उसपर भी ग्रहण लगता नजर आ रहा था। हालांकि तुरंत संशय के बादल छंटे। इन आदिवासियों के साथ
हर वर्ग के लोगों की सरकार ने सुध ली। प्रशासन के साथ समाजसेवियों ने भी मदद को हाथ बढ़ाए। इन सबके कारण फिलहाल यहां स्थिति सामान्य है। या यूं कहें कि सामान्य से बेहतर है। अब तो दुरूह इलाकों में
रहनेवाले इन आदिवासी परिवारों को भरपेट भोजन मिल रहा है। ऐसे में कोरोना को ये अपने लिए वरदान मान रहे हैं। कहते हैं, जहां लॉकडाउन के कारण शहर की जिंदगी ठहर गई है, वहीं इनकी जिंदगी अब मुस्कराने
लगी है। न जाने कोरोना ने कितनों को बर्बाद किया। कई देशों की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। इस वायरस को रोकने के लिए अपने देश में भी किए गए लॉकडाउन के कारण फिलहाल तमाम व्यवसाय ठप पड़े हैं, उसके
बावजूद टुंडी प्रखंड में लोग खुश हैं। आम दिनों में पेट भरने को छानते जंगलों की खाक: 39 हजार 545 हेक्टेयर में फैले टुंडी प्रखंड को नक्सल प्रभावित इलाके के रूप भी जाना जाता है। दिशोम गुरु शिबू
सोरेन ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत जंगलों से घिरे इसी इलाके से की। धनबाद और गिरिडीह की सीमा पर बसे इस प्रखंड में 26 हजार 537 एकड़ क्षेत्र वन भूमि है। करीब एक लाख 24 हजार की आबादी में
यहां लगभग 52 हजार लोग अनुसूचित जनजाति तो लगभग साढ़े 13 हजार लोग अनुसूचित जाति के हैं। 25 पंचायतों में बंटे इस प्रखंड के सभी 296 गांवों में आदिवासी समुदाय के लोगों की ही बहुलता है। आम दिनों
में इन्हें भले पेट की आग बुझाने के लिए जंगलों की खाक छाननी पड़ती हो, लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण ने मानो इनकी जिंदगी और लंबी कर दी। लॉकडाउन में प्रशासन और समाजसेवियों की मदद से भरपूर राशन
मिल रहा है। आमतौर पर इस प्रखंड के जंगली इलाकों में रहनेवाले लगभग 50 फीसद लोग पत्ता-दातुन आदि बेचकर अपना गुजारा करते हैं। पता ही नहीं चला, कब दरवाजे पर 2020 ने दे दी दस्तक: आज दुनिया भले मंगल
ग्रह और चांद की बात करती है, लेकिन टुंडी के लोगों को मालूम ही नहीं कि कब उनके दरवाजे पर 2020 ने दस्तक दे दी। आदिवासियों के हक में जब यहां शिबू ने उलगुलान का बिगुल फूंका था, तब भी इनके समक्ष
पेट भरने की ही चुनौती थी और आज भी स्थिति कमोबेश वही है। हां, बीते कुछ वर्षों में गांव के युवक कमाने के लिए दर-बदर हुए, तब उन्हें पता चला कि दुनिया तेजी से भागकर इतना आगे पहुंच चुकी है।
रोजी-रोजगार की तलाश में पश्चिम बंगाल गए युवक अब मास्क का मतलब भी समझ रहे हैं और कोरोना वायरस का भी, लेकिन गांव के बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को इन सबसे कोई लेना-देना नहीं। उन्हें तो बस
इससे मतलब है कि दिन में कम से कम एक बार किसी तरह पेट भर जाए। बाहर रोजगार तो मिलता है, लेकिन जान की कीमत पर: कोलहर पंचायत निवासी रामलाल मुर्मू बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में रोजगार तो मिलता
है, लेकिन अपनी जान को दांव पर लगा कर। गांव के युवक यहां से ट्रकों में भरकर बंगाल के कोयला खदानों में ले जाए जाते हैं। वहां मजदूरी के एवज में उन्हें एक हजार रुपया प्रतिदिन तक की कमाई हो जाती
है, लेकिन अगर कभी नसीब ने साथ नहीं दिया तो यहीं जान भी चली जाती है और फिर परिजन उसकी लाश तक नहीं देख पाते। इसी पंचायत की शांति देवी का कहना है कि कोरोना के कारण सरकार ने बंदी की तो अब कम से
कम अपने बाल-बच्चों को बाहर भेजने की मजबूरी नहीं है। अब भूखे भी नहीं रहना पड़ रहा। प्रशासन ने सुविधाएं बढ़ाई हैं। पंचायत के लाला टोला में भाजपा नेता ज्ञान रंजन सिन्हा की पहल पर शुरू किए गए
खिचड़ी सेंटर का जिक्र करते हुए कहतीं हैं कि यहां दिन में पूरे परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था हो जाती है। पीडीएस दुकानों पर उपलब्ध कराया जा रहा दो माह का राशन: टुंडी की बीडीओ पायल राज ने
बताया कि प्रखंड क्षेत्र में अधिकांश गांव रिमोट एरिया हैं। यहां के लोगों को लॉकडाउन की अवधि में भोजन-पानी का संकट न हो, इसलिए पीडीएस दुकानों के माध्यम से अप्रैल और मई माह के राशन का वितरण
किया जा रहा है। जिनके पास राशन कार्ड है, या जिन्होंने इसके लिए ऑनलाइन आवेदन किया है, उन्हें पीडीएस दुकानों से ही अनाज मिल जाएगा, लेकिन जो इन दोनों कैटेगरी में नहीं आते, उन्हें भी आकस्मिक
खाद्यान्न मद से 10 किलो चावल उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके अलावा मिड डे मील और पोषाहार डोर-टू-डोर पहुंचाया जा रहा है। पीडीएस दुकानों पर डोर स्टेप डिलीवरी की जा रही है, इसलिए क्षेत्र में
लॉकडाउन भी पूरी तरह सफल साबित हो रहा है। उन्होंने बताया कि टुंडी थाना के पास एक दाल-भात केंद्र पहले से संचालित है। मनियाडीह में एक केंद्र गुरुवार को खोला गया। इसके अलावा कोलहर में भी दाल-भात
केंद्र खोला जाना है। खिचड़ी सेंटर में लगती लंबी लाइन, पांच सौ से अधिक लोगों को मिल रहा भोजन: लॉकडाउन किए जाने पर बीते 28 मार्च को कोलहर पंचायत के लाला टोला में ग्रामीणों के सहयोग से खिचड़ी
सेंटर की शुरुआत की गई। झाविमो के भाजपा में विलय होने पर पार्टी में आए ज्ञान रंजन सिन्हा ने बताया कि पहले उन्हें पीएम रिलीफ फंड में रुपये दान करने का विचार आया। फिर परिजनों और ग्रामीणों के
साथ बैठकर निर्णय लिया कि क्यों न पंचायत के लोगों को ही हर दिन भोजन ही उपलब्ध कराया जाए। इसके बाद उन्होंने इस केंद्र को शुरू किया। बताया कि प्रतिदिन सात-आठ गांवों के पांच सौ से अधिक लोग यहां
भोजन करने पहुंचते हैं। 40 किलो चावल से अधिक की खिचड़ी रोज बन रही है और दो घंटे में ही यह बंट भी जाती है। बताया कि एक दिन में लगभग तीन हजार रुपये का खर्च इसमें आता है, लेकिन इस बात की
संतुष्टि है कि इससे पंचायत के लोगों को लाभ मिल रहा है। कहा कि वैसे तो भोजन वितरण के लिए 12 से दो तक का समय निर्धारित है, लेकिन इसके बाद भी जो आते हैं, उन्हें खाली हाथ नहीं लौटाया जाता है।
हालांकि भोजन लेने के लिए करीब साढ़े 11 बजे से हीे लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है। ग्रामीणों को स्वच्छता का पढ़ा रहे पाठ, वायरस के प्रति कर रहे जागरूक: इस खिचड़ी सेंटर के माध्यम से
ग्रामीणों को भोजन उपलब्ध कराने में लगे स्वयंसेवकों का कहना है कि लॉकडाउन में उन्हें रोजगार मिल गया, वरना कॉलेज-ऑफिस की छुट्टियों के कारण खाली बैठे बोर हो रहे थे। ग्रामीण इसमें सेवाभाव से
सहयोग कर रहे हैं। हेठ कुल्ही गांव के मनोज रजवार और राजू राय भोजन पकाते हैं। ज्ञान रंजन ने बताया कि इस केंद्र में भोजन उपलब्ध कराने के साथ ग्रामीणों को स्वच्छता का भी पाठ पढ़ाया जा रहा है।
पूरे केंद्र की सफाई के बाद यहां भोजन पकता है। भोजन लेने से पहले ग्रामीणों के लिए यहीं हाथ धोने के लिए साबुन और पानी की भी व्यवस्था की गई है, ताकि वे व्यक्तिगत जीवन में भी स्वच्छता के संदेश
को अमल में ला सकें। उन्होंने कहा कि आगे भी अगर लॉकडाउन को बढ़ाया जाता है तो वे निरंतर लोगों को भोजन उपलब्ध कराते रहेंगे। बताया कि लोग थाली-झोला लेकर आते हैं और यहां बैठकर खाने के साथ-साथ
खिचड़ी अपने घर भी ले जाते हैं।